समाजवादी पार्टी के लिए मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. इस उपचुनावों में सपा ने जातीय समीकरणों का विश्लेषण करते हुए मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला है. इनमें से चार प्रमुख सीटों में मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं, इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी का अनुपात 37 से 60 प्रतिशत के बीच है, जिससे यह तय होता है कि मुस्लिम वोट किसके पक्ष में जाएंगे, इसका उपचुनाव के नतीजों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होगा.
2022 के विधानसभा चुनाव में, मुसलमानों ने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा को लगभग 80 प्रतिशत तक का समर्थन दिया था. इसके बाद, 2024 के लोकसभा चुनावों में भी इंडिया गठबंधन को मुस्लिम मतदाताओं का जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ, जिससे सपा ने करीब 92 प्रतिशत मुस्लिम वोट पाया. इसी तरह की स्थिति में, अखिलेश यादव किसी भी तरह इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं.
उपचुनाव का यह परिणाम सिर्फ वर्तमान के लिए नहीं, बल्कि 2027 के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भी सपा के लिए महत्वपूर्ण है. मायावती और चंद्रशेखर जैसे नेता भी मुस्लिम समुदाय पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश में हैं. ऐसे में सपा के स्टार प्रचारक के रूप में आजम खान का नाम सूची में शामिल करना एक ठोस संदेश प्रतीत होता है. अखिलेश यादव यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सपा का PDA – पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्गों का एकजुट समर्थन बना रहे, ताकि आगामी चुनावों में वे सशक्त रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकें.