जूडो में भारत को मिला पहला पदक…
कपिल परमार ने कांस्य पदक जीत कर
भारत ने 25 पदक जीतकर इतिहास रचा बचपन में उन्हें बिजली का झटका लगा था, वे कई महीनों तक कोमा में रहे और वापस लौटे तो उनकी आंखों की रोशनी चली गई…. दरसल मध्य प्रदेश के शिवोर नामक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले कपिल परमार की जिंदगी में तब नाटकीय मोड़ आया जब बचपन में खेतों में खेलते समय गलती से पानी का पंप छू जाने के कारण उन्हें बिजली का तेज झटका लगा। एक गांव वाले ने उन्हें बेहोशी की हालत में पाया और छह महीने तक कोमा में रहे।
इस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी, लेकिन उन्हें वह हासिल करने से कभी नहीं रोका जो वह हमेशा से चाहते थे। उन्होंने एक योद्धा की तरह आगे बढ़कर भारत के लिए जूडो में पहला पैरालंपिक पदक जीता, गुरुवार को यहां फाइनल में ब्राजील के एलीलटन डी ओलिवेरा को हराकर पुरुषों के 60 किग्रा (जे1) में कांस्य पदक जीता।
परमार ने शानदार प्रदर्शन किया और अपने प्रतिद्वंद्वी पर शुरू से अंत तक दबदबा बनाए रखते हुए कांस्य पदक मुकाबले में 10-0 से जीत दर्ज की।
इससे पहले वह सेमीफाइनल में एस. बनिताबा खोर्रम अबादी से हार गए थे, यहां चैंप्स-डे-मार्ट एरिना में उनके ईरानी प्रतिद्वंद्वी ने उन्हें 0-10 से हराया था।
पैरा जूडो में J1 वर्ग उन एथलीटों के लिए है जो बिल्कुल भी या बहुत कम दृश्य गतिविधि से पीड़ित हैं। इस श्रेणी के एथलीट लाल घेरे पहनते हैं जो यह संकेत देते हैं कि उन्हें प्रतियोगिता से पहले, उसके दौरान और बाद में निर्देशित सहायता की आवश्यकता हो सकती है।
इसी वर्ग में 2022 एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने वाले परमार ने इससे पहले क्वार्टर फाइनल में वेनेजुएला के मार्को डेनिस ब्लैंको को 10-0 से हराया था।
कपिल ने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया है। वह और उसका भाई अपना खर्च चलाने के लिए चाय की दुकान चलाते थे। आज भी कपिल के भाई ललित ही उनके आर्थिक सहयोग का मुख्य स्रोत हैं, जो जूडो के प्रति उनके जुनून को आगे बढ़ाने में उनकी मदद करते रहते हैं।
ठीक होने के बाद, डॉक्टरों ने कपिल को वजन बढ़ाने की सलाह दी। इसी दौरान उन्हें अपने गुरु और कोच भगवान दास और मनोज ‘सर’ के प्रोत्साहन से ब्लाइंड जूडो का पता चला, जिन्होंने उन्हें इस खेल को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित क