भारत में इन दिनों महिला सुरक्षा का मुद्दा गंभीर चिंता का विषय है। कोलकाता में महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या, कन्नौज में नाबालिग के साथ रेप जैसी घटनाओं से देश में आक्रोश है। इस बीच एडीआर यानी की एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिसर्च की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट में उन जनप्रतिनिधियों की सूची है जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं। एडीआर रिपोर्ट कहती है कि 151 मौजूदा सांसदों और विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं। इनमें एक तिहाई से ज्यादा 54 मामले सत्ताधारी पार्टी यानी भाजपा से जुड़े हैं। कांग्रेस के 23 और टीडीपी के 17 नेताओं के खिलाफ इस तरह के मामले हैं। इसमें भी हैरान करने वाली बात यह है कि 151 में से 16 सांसदों-विधायकों पर दुष्कर्म से संबंधित मामलें हैं, जिनमें से दो मौजूदा सांसद हैं और 14 विधायक हैं। इससे कुत्सित बात और क्या हो सकती है कि एक ओर हमारे माननीय चुनाव के वक्त महिला सुरक्षा पर लंबी-लंबी बातें करते हैं, लेकिन वही नेता महिलाओं के खिलाफ हिंसा में संलग्न पाए जा रहे हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि हर चुनाव में ऐसे लोग भी बतौर उम्मीदवार किसी सीट पर अपना दावा पेश करते हैं और उनमें से कई जीत कर सांसद या विधायक भी बन जाते हैं, जिन पर गंभीर अपराधों के आरोप होते हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य कर दिया था कि राजनीतिक दलों को सार्वजनिक रूप से जानकारी देनी होगी कि वे आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को क्यों टिकट दे रहे हैं। हालांकि एडीआर ने सिफारिश की थी कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए। साथ ही एडीआर ने यह भी सिफारिश की, कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ अदालती मामलों का तय समय सीमा में समाधान किया जाना चाहिए और अदालतों द्वारा पुलिस जांच की निगरानी की जानी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। अब सवाल उठता है कि यदि किसी जनप्रतिनिधि पर महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध करने या उसमें शामिल होने का आरोप है तो उससे महिलाओं के हक में ईमानदार लड़ाई की कितनी उम्मीद की जा सकती है? जनता के प्रतिनिधि कहे जाने वाले जो लोग खुद गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपी होते हैं, वे कानून बनाने या बचाने के दायित्व के प्रति कितने गंभीर हो सकते हैं? ऐसे में दागी नुमाइंदों का संसद में पहुंचना देश के लिए ठीक नहीं है। संसद में दागी नेता न पहुंचे इसके लिए देश की जनता को सोच समझकर अपने मत का प्रयोग करना चाहिए। ताकि लोकतंत्र के मंदिर में स्वच्छ छवि के लोग पहुंचे।